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शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि व्रत नियम 2024 : व्रत विधि, क्या खाना चाहिए, पारण विधि, व्रत कथा | Mahashivratri Vrat Niyam

महाशिवरात्रि व्रत नियम 2024:- देवो के देव महादेव की कृपा जिस भी व्यक्ति पर होती है, उसे कभी भी कोई कष्ट छू नही पाता है. केवल एक लोठा जल से ही प्रसन्न हो जाते है भगवान भोलेनाथ . सभी भक्तो को यह मालूम है कि महाशिवरात्रि आने वाली है. इस दिन शिव का हर एक भक्त  ढोल नगाड़े के साथ इस त्यौहार को मनाता हैं. इन्हे देखने पर ऐसा लगता है मानो पूरा विश्व भक्तिमय हो गया है. महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के लिए व्रत या उपवास रखने का अपना ही एक अलग महत्व है. बताया जाता है कि जो भी व्यक्ति पूरे विधि और विधान से Mahashivratri Vrat करता है, भगवान महादेव उस भक्त पर अपनी कृपा बरसाते है. तो

इस Article के जरिए हम आपको महाशिवरात्रि व्रत नियम, व्रत विधि, व्रत में क्या खाना चाहिए क्या नहीं, पारण विधि तथा व्रत कथा से जुड़ी कुछ विशेष जानकारियां उपलब्ध करवाने जा रहे हैं. महादेव के प्रत्येक भक्त से निवेदन है कि वे इस Article को पूरा पढ़कर इसका लाभ उठाए..

Mahashivratri Vrat Niyam

Mahashivratri Vrat 2024 

शिवरात्रि के व्रतों में सबसे सर्वोत्तम महाशिवरात्रि का व्रत माना गया है. यह व्रत फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में 08 मार्च 2024, शुक्रवार के दिन रखा जाएगा. इस विशेष दिन पर शिव योग का निर्माण हो रहा है, जो मध्य रात्रि 12:46 तक रहेगा और इसके बाद सिद्ध योग प्रारम्भ हो जाएगा. इस दिन श्रवण नक्षत्र का भी निर्माण हो रहा है जो रात्रि 10:41 तक रहेगा. भगवान महादेव का यह त्यौहार देश और दुनिया में बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन महादेव के हर मंदिर में भक्तों की खासी भीड़ लगी रहती है. सुबह जल्दी उठकर स्नान करके है भक्त महादेव की पूजा करता है. इस माह Mahashivratri Vrat 2024, 8 मार्च को आ रही है. जैसे जैसे यह Vrat पास आ रहा है, वैसे वैसे लोगो में इसका उत्साह बढ़ता हुआ नजर आ रहा है.

महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व

महाशिवरात्रि का व्रत क्यों रखा जाता है

बहुत से लोग यह जरूर जानना चाहते होंगे कि महाशिवरात्रि का व्रत क्यों रखा जाता है. तो आपको बता दे कि हर शिवभक्त के लिए महाशिवरात्रि का व्रत का बहुत खास और महत्वपूर्ण होता है. अधिकांश लोग तो बिना कुछ खाए पिए ही भूखे और प्यासे इस व्रत का पालन करते है. बताया जाता है यदि कोई भक्त ईमानदारी के साथ इस  व्रत को करता है, तो  भगवान शिव उसे उसके सभी पापों से मुक्त कर देते हैं और उसे प्रचुर समृद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं. इसके साथ ही हमारी इच्छाएँ भी फलित होने लगती हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा उस पर बरसती है और उसकी हर मनोकामना पूरी होती है.इसलिए एक भक्त के लिए महाशिवरात्रि का व्रत बेहद ही महत्वपूर्ण होता है.

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महाशिवरात्रि व्रत में क्या खाना चाहिए

महादेव के सभी व्रत में से सबसे अधिक सर्वोच्च महाशिवरात्रि व्रत होता है. आइए हम आपको बताते है कि महाशिवरात्रि व्रत में क्या खाना चाहिए. अगर आपने उपवास रखा है तो आपको ड्राई फ्रूट्स और फ्रूट्स खा सकते है. यानी कि महाशिवरात्रि के व्रत में काजू, किशमिश, बादाम, मखाना इत्यादि खा सकते हैं. इसके साथ ही आप इस व्रत के मौके पर पर साबूदाना की खिचड़ी, सिघांडे के आटे का हलवा भी खा सकते हैं. यह सभी खाने से आपको व्रत के दौरान कमजोरी महसूस नहीं होगी.

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महाशिवरात्रि का व्रत कब खोला जाता है

अब आपको बताते है कि महाशिवरात्रि का व्रत कब खोला जाता है. महाशिवरात्रि व्रत लगभग पूरे दिन रखा जाने वाला एक बड़ा व्रत हैं, यह व्रत चतुर्दशी तिथि को शुरु किया जाता है और इसके अगले दिन सुबह हो  इस व्रत का पारण किया जाता है और इस व्रत में आपको खास तौर पर रात को चारो प्रहर में भगवान शिव की पूजा आराधना करनी चाहिए.

शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि व्रत नियम 

जो भी शिवभक्त महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले है ,तो उन्हे सबसे पहले महाशिवरात्रि व्रत नियम के बारे में भी जान लेना चाहिए. 

  • शिवरात्रि के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लें.
  • महाशिवरात्रि व्रत पर ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए।
  • शिव रात्रि व्रत में नमक का सेवन नहीं किया जाता है. यदि फिर भी कोई बीमार है या फिर गर्भवती महिला हैं या बुजुर्ग हैं तो वह व्रत में फलाहारी नमक का प्रयोग कर सकते हैं.
  • महाशिवरात्रि के दौरान रात्रि जागरण करना चाहिए, इससे व्रत का फल दोगुना हो जाता है.
  • उपवास के दौरान भोजन और नमक से परहेज करना चाहिए.
  • अपने घर में शिवलिंग या मंदिर में जाकर शिवलिंग पर फूल, पुष्प, बेलपत्र आदि चढ़ाकर भगवान शिव की प्रतिमा पर चंदन का तिलक लगाएं.
  • महाशिवरात्रि दूध, पानी और फलों का सेवन कर सकते हैं.
  • इस दिन सभी प्रकार की तामसिक चीजों के सेवन से बचना चाहिए।
  • इस दिन भगवान शिव के नामों का जप करना और उनके मंदिर जाना शुभ माना जाता है.
  • इस पवित्र दिन व्रतियों को भगवान शंकर की महिमा सुनना और सुनाना चाहिए.
  • शिवरात्रि के दिन मन शांत रखना चाहिए.
  • महाशिवरात्रि को सद्गुणों का अभ्यास करना चाहिए और सभी बुराइयों से दूर रहना चाहिए.
  • व्रत रखने वाले व्‍यक्ति को दिन में निद्रा नहीं लेनी चाहिए.
  • शिवजी को खट्टे फलों का भोग नहीं लगाना चाहिए और सफेद मिष्‍ठान का प्रयोग करना चाहिए.

शिवरात्रि व्रत विधि

महाशिवरात्रि व्रत नियम के बारे में जानने के बाद अब हम शिवरात्रि व्रत विधि पर भीं एक नज़र डाल लेते है.

  • महाशिवरात्रि की सुबह जल्दी उठकर स्नान  करने के बाद, अपने माथे पर भस्म का त्रिपुंड तिलक लगाएं और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें. इसके बाद समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग की पूजा आराधना करें. इसके बाद ही आप व्रत करने का संकल्प लें.
  • अब आप अपने हाथ में जल, फूल, अक्षत, सुपारी और रुपया रखें, उसके बाद नीचे लिखा मंत्र बोलें

शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्।

निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।

  • यह कहकर हाथ में फूल, चावल व जल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए नीचे लिखा श्लोक बोलें

देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।

कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।

तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।

कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।

  • इस तरह महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प लेने के बाद पूरे दिन आप शिवजी का ध्यान करें. इसके साथ ही पूरे दिन व्रत के समय मन में काम,क्रोध की भावना न आने दें. शाम को प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त के समय शिवजी की विशेष पूजा करें और रातभर जागरण कर के चारों प्रहर में पूजा करने का प्रयास जरूर करें.

शिव रात्रि व्रत पारण विधि / व्रत खोले की विधि

पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 8 मार्च को संध्याकाल 09 बजकर 57 मिनट पर होगी. इसका समापन अगले दिन 09 मार्च को संध्याकाल 06 बजकर 17 मिनट पर होगा. शिव जी की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, इसलिए उदया तिथि देखना जरूर नहीं होता है. तो ऐसे में इस साल महाशिवरात्रि का व्रत 8 मार्च 2024 को रखा जाएगा. वही अगर बात करे महाशिवरात्रि व्रत पारण विधि के बारे में तो व्रत का पारण करने से पहले आप शुद्ध जल से स्नान करें और उसके बाद भगवान शिव की उपासना करें. जिसके बाद आप व्रत का पारण करें. इसके साथ ही आप इस बात का खयाल जरूर रखें कि व्रत पारण के समय भी सात्विक भोजन ही ग्रहण करें.  ऐसा करने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर भक्तो की हर मनोकामना को पूर्ण करते है.

Mahashiv Ratri Vart Niyam

महाशिवरात्रि व्रत कथा

एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’ उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था.पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था.वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया.संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी.

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी. संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया. अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था. 

शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा.बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला, पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए. एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूं. शीघ्र ही प्रसव करूंगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है. मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना.’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई.

Shiv Ratri Vart Katha

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली.शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया. तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं. कामातुर विरहिणी हूं. अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं. मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी.’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया. दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका. वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था.

तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था.उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई. वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी. इस समय मुझे छोड़ दो. इसपर शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं. इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं.मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे. उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी है इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं।

हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं.मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई. उसने उस मृगी को भी जाने दिया. शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था.पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया. 

शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा. शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े. मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो.मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित होऊंगा.

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी. तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी. अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो. मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं.’ उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था. उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था. धनुष-बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए. भगवान शिव की कृपा से उसका हिंसक हृदय करुणा भाव से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप करने लगा.

ताकि वह उनका शिकार कर सके, लेकिन जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई. उसके नेत्रों से आंसुओं की धारा बहने लगी.उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटाकर सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया. देवलोक से सभी देवी-देवता भी इस घटना को देख रहे थे.सभी ने पुष्प-वर्षा की. तब शिकारी और मृग परिवार को मोक्ष की प्राप्ति हुई.

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