Online Service in Hindi

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

जन्माष्टमी व्रत के विधि विधान क्या है, व्रत के नियम, पारण विधि तथा व्रत कथा पढ़े 

जन्माष्टमी व्रत के विधि विधान क्या है: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का पावन पर्व, भक्ति और उत्साह से मनाया जाता है। इस दिन, भक्त व्रत रखते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। लेकिन Janmashtami Vrat को सही ढंग से करने के लिए कुछ विधि-विधानों का पालन करना ज़रूरी होता है।

इस ब्लॉग में, हम Janmashtami Vrat Kab Hai, Janmashtami Vrat Ki Vidhi, शुभ मुहूर्त, व्रत का समय, नियम, पूजा की विधि, पारण विधि और व्रत कथा के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसके अलावा, हम जन्माष्टमी के दिन किए जाने वाले कुछ विशेष रीति-रिवाजों और परंपराओं के बारे में भी जानेंगे।

जन्माष्टमी व्रत कब है | janmashtami Vrat Kab Hai

इस वर्ष, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व 26 अगस्त 2024, सोमवार को मनाया जाएगा। अष्टमी तिथि 26 अगस्त को सुबह 03 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होकर 27 अगस्त को सुबह 02 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। इस तिथि के दौरान ही भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाएगा।

Janmashtami Kab Hai 2024: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कब है? जानें शुभ मुहूर्त, व्रत पारण का समय

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त

इस वर्ष, भगवान श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व 26 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। इस दिन, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजे से 27 अगस्त की देर सुबह 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इस शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

जन्माष्टमी व्रत के विधि विधान | Janmashtami Vrat Ke Vidhi Vidhan

  • सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करके, साफ कपड़े पहनकर, भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए व्रत का प्रारंभ करें।
  • घर में या मंदिर में, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उनकी पूजा-अर्चना करें। फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप, नैवेद्य, आदि चढ़ाएं।
  • भगवान श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन करें।
  • कथा: भगवान श्रीकृष्ण की कथा सुनें या पढ़ें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद, स्नान करके, भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए व्रत का समापन करें।
  • पारण में फल, दूध, दही, मिठाई, आदि का सेवन करें।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत के नियम | Janmashtami Vrat Ke Niyam

  • जन्माष्टमी व्रत अष्टमी तिथि के दिन प्रारंभ होता है। व्रत का प्रारंभ सुबह सूर्योदय से पहले किया जाता है।
  • Janmashtami Vrat अष्टमी तिथि के दिन ही समाप्त होता है। व्रत का समापन अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है।
  • जन्माष्टमी व्रत के दौरान, भक्त केवल फल, सब्जियां, दूध और दही का सेवन करते हैं। मांस, मछली, अंडे, शराब और प्याज-लहसुन का सेवन वर्जित होता है।
  • Janmashtami Vrat के दौरान, भक्तों को कम से कम सोना चाहिए। रात में जागकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करना चाहिए।
  • जन्माष्टमी व्रत के दौरान, भक्त भगवान श्रीकृष्ण के भजन-कीर्तन करते हैं। यह व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • Janmashtami Vrat के दौरान, भक्त भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा में फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप, नैवेद्य, आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • जन्माष्टमी व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। पारण में फल, दूध, दही, मिठाई, आदि का सेवन किया जाता है।

जन्माष्टमी व्रत पारण विधि | Janmashtami Vrat Paran Vidhi

  • पारण से पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  • भगवान कृष्ण की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाएं और धूप दें।
  • भगवान कृष्ण को फूल, चंदन, रोली, और अक्षत अर्पित करें।
  • भगवान कृष्ण से व्रत का पारण करने की अनुमति मांगें।
  • व्रत के दौरान किए गए पापों के क्षमा करने की प्रार्थना करें।
  • पारण के लिए फलाहार का सेवन करें।
  • पारण भोजन में फल, दूध, और पानी शामिल हो सकते हैं।
  • कुछ लोग पारण के लिए खीर, हलवा, या अन्य मीठे व्यंजन भी खाते हैं।
  • पारण के दौरान “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
  • पारण के बाद जरूरतमंदों को दान करें।
  • दान करने से व्रत का फल और भी अधिक बढ़ता है।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा | Janmashtami Vrat Katha

मथुरा नगरी, जहाँ यमुना की धारा बहती थी, वहाँ राजा उग्रसेन का शासन था। उनके पुत्र कंस, अपने पिता की राजगद्दी पर बैठने के लिए लालची थे। उन्होंने अपने पिता को कैद कर दिया और स्वयं राजा बन गए। कंस के मन में एक भयावह भय था, एक आकाशवाणी ने उसे बताया था कि देवकी, उसकी बहन, का आठवां पुत्र उसका नाश करेगा।

कंस ने देवकी और उसके पति वासुदेव को जेल में कैद कर दिया। उसने देवकी के सात बच्चों को मार डाला, लेकिन आठवां बच्चा, श्रीकृष्ण, एक अद्भुत रात में जन्म लेने वाला था। उस रात, जेल के दरवाजे स्वतः खुल गए, और आसमान में बिजली चमक रही थी। श्रीकृष्ण, एक दिव्य शिशु के रूप में, देवकी के कोख से जन्मे।

भगवान ने वासुदेव से कहा कि वह श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद बाबा के पास ले जाएँ और मथुरा में जन्मी एक कन्या को कंस को सौंप दें। वासुदेव ने ऐसा ही किया। कंस ने कन्या को मारने का प्रयास किया, लेकिन वह अचानक गायब हो गई। आकाशवाणी ने कंस को बताया कि श्रीकृष्ण गोकुल में सुरक्षित हैं।

कंस ने गोकुल पर राक्षसों को भेजा, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन सभी को परास्त कर दिया। अंत में, श्रीकृष्ण ने स्वयं कंस का वध किया और मथुरा को दुष्टता से मुक्त कराया। श्रीकृष्ण के जन्म ने मथुरा में खुशियों का जश्न मनाया, और उनके जीवन ने दुनिया को सत्य, प्रेम, और धर्म का मार्ग दिखाया।

Leave a Comment