खाटू श्याम किसके पुत्र थे:- खाटू श्याम, जिनकी भक्ति और श्रद्धा की कहानियां दूर-दूर तक फैली हुई हैं, महाभारत काल के एक महान योद्धा थे। वह पांडवों में भीम पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे। खाटू श्याम का वास्तविक नाम “बर्बरीक” था। उनकी माता (कामकंटका) मोरवी और पिता घटोत्कच थे, जो स्वयं भीम के पुत्र थे। खाटू श्याम की वीरता और उनकी अनन्य भक्ति के कारण खाटू श्याम जी को कलियुग का भगवान माना जाता है।
राजस्थान के सीकर में स्थित खाटू श्याम का मंदिर बेहद प्रसिद्ध है और यहां के भक्तों का मानना है कि जो भी खाटू श्याम भगवान के दर पर आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता है। उनके दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि खाटू श्याम को कलियुग का भगवान क्यों कहा जाता है और खाटू श्याम किसके पुत्र थे। इस रहस्य को समझने के लिए हमें खाटू श्याम के पौराणिक और धार्मिक महत्व को समझना होगा।
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खाटू श्याम किसके पुत्र थे | Khatu Shyam Kis Ke Putr The
पौराणिक कथाओं के अनुसार, खाटू श्याम, जिन्हें बर्बरीक के नाम से भी जाना जाता है, भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र थे। महाभारत के युद्ध में बर्बरीक ने अपने अचूक बाणों की शक्ति से सभी सेनाओं को परास्त करने का संकल्प लिया था। भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से गुरुदक्षिणा मांगी, इस पर बर्बरीक ने कहा कि वह युद्ध में सभी सेनाओं को हराकर अपनी जीत का प्रमाण श्री कृष्ण को देगा। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को समझाया कि सभी सेनाओं में उनकी पत्नी रुक्मिणी और सात्यकि (कृष्ण के भाई) भी शामिल थे।
बर्बरीक ने श्री कृष्ण के प्रति अपनी अटूट भक्ति और सम्मान के कारण अपनी गर्दन काटकर श्री कृष्ण को अर्पित कर दी। इस वीरता और समर्पण के कारण श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अमरता प्रदान की और कलियुग में खाटू श्याम के रूप में पूजे जाने का वरदान दिया। इस प्रकार, खाटू श्याम भीम के पोते और घटोत्कच के पुत्र थे, जिन्होंने अपनी बहादुरी और भक्ति के लिए अमरता प्राप्त की थी।
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खाटू श्याम मंदिर, राजस्थान | Khatu Shyam Temple, Rajasthan
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर भगवान कृष्ण के अवतार बर्बरीक को समर्पित है, जिन्हें खाटू श्याम के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। यह मंदिर लाल बलुआ पत्थर से बना है और इसके चारों ओर सफेद संगमरमर का शानदार काम किया गया है। मंदिर के सामने एक विशाल हनुमान मूर्ति है, जो भक्तों का ध्यान आकर्षित करती है।
गर्भगृह में काले संगमरमर से बनी भगवान खाटू श्याम की मूर्ति स्थापित है, जिस पर स्वर्ण मुकुट लगा हुआ है। मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर और धर्मशालाएं भी हैं, जो भक्तों के लिए सुविधाजनक आवास प्रदान करते हैं। यहां एक विशाल तालाब भी है, जहां श्रद्धालु स्नान कर पवित्रता का अनुभव करते हैं। इस पवित्र स्थान की भव्यता और दिव्यता भक्तों को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।
खाटू श्याम की कहानी | Khatu Shyam Ki Kahani
महाभारत के युद्ध में भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक अपने अचूक बाणों की शक्ति से सभी सेनाओं को परास्त करने के लिए जाने जाते थे। भगवान श्री कृष्ण, जो कौरवों की ओर से युद्ध में शामिल थे, ने बर्बरीक से गुरुदक्षिणा मांगी। बर्बरीक ने कहा कि वह युद्ध में सभी सेनाओं को परास्त करेगा और अपनी जीत का प्रमाण श्री कृष्ण को देगा। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को समझाया कि सभी सेनाओं में रुक्मिणी (श्री कृष्ण की पत्नी) और सात्यकि (श्री कृष्ण के भाई) भी शामिल हैं। श्री कृष्ण के प्रति अपनी अटूट भक्ति और सम्मान के कारण बर्बरीक ने अपनी गर्दन काटकर श्री कृष्ण को अर्पित कर दी। इसी वीरता और समर्पण के कारण श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अमरता प्रदान की और कलियुग में खाटू श्याम के रूप में पूजे जाने का वरदान दिया।
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मंदिर का इतिहास
- 1027 ई.: राजा नरसिंहदेव ने बर्बरीक का सिर खाटू में स्थापित किया और एक मंदिर बनवाया।
- 13वीं शताब्दी: मुगलों ने मंदिर को नष्ट कर दिया।
- 16वीं शताब्दी: राजा पृथ्वीराज सिंह ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
- 18वीं शताब्दी: मंदिर का विस्तार किया गया।
- आज: खाटू श्याम मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है और हर साल लाखों भक्त यहां आते हैं।
खाटू श्याम की महिमा
बर्बरीक अपनी वीरता और अपने अचूक बाणों की शक्ति के लिए जाने जाते हैं।
बर्बरीक भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी अटूट भक्ति और समर्पण के प्रेरणास्रोत हैं।
भक्तों का मानना है कि खाटू श्याम उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.