हिंदू धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार रंगो वाली होली है, जो कि पूरे देश में जोरो शोरो से मनाया जाता है. होलिका दहन पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. लेकिन एक सबसे बड़ी बात वो ये कि होलिका दहन के समय होली भद्रा ( Holi Bhadra) यानी की भद्रकाल देखा जाता है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर होली भद्रा क्या है. अधिकांश लोग इस बारे में नही जानते हैं. तो खास उन्ही के लिए हम इस Article के जरिए होली भद्रा से जुड़ी कई विशेष जानकारियां उपलब्ध करवाने जा रहे. तो आइए जानें इस बारे में..
भद्रा कौन है
आइए सबसे पहले यह जानते है कि भद्रा कौन है, तो आपको बता दे कि दैत्यों का नाश करने के लिए भद्रा गर्दभ यानी कि गधे के मुख और लंबे पूंछ और 3 पैरयुक्त पैदा हुई थी . एक पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य नारायण और पत्नी छाया की कन्या एवं शनि की बहन है.भद्रा का रूप बहुत ही भयंकर है , वह काले वर्ण, लंबे बाल, और बड़े दांत वाली कन्या है. इनका स्वभाव इनके भाई शनि के जैसा ही कड़क है. भद्रा ने उत्पन्न होते ही यज्ञों में बाधा पहुंचाने लगी और कई मंगल कार्यों में खलल डालकर, पूरे जगत में तबाही मचाने लगी. उसके इसी स्वभाव से चिंतित होकर सूर्य देव को Bhadra के विवाह की चिंता सताने लगी. क्योंकि सूर्य देव ने जिससे भी विवाह की बात की, सभी ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. तब सूर्यदेव ब्रह्माजी के पास सहायता मांगने गए.
ब्रह्माजी ने तब विष्टि से कहा कि- ‘भद्रे! बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो तथा जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करे, तो तुम उन्हीं में विघ्न डालो. जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना।’ इस प्रकार उपदेश देकर ब्रह्माजी अपने लोक चले गए. बस तभी से भद्रा अपने समय में ही देव दानव और मानव समस्त प्राणियों को कष्ट देती हुई भ्रमण करने लगी. इस तरह भद्रा की उत्पत्ति हुई.
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होली पर भद्रा का महत्व
Holi पर भद्रा का महत्व काफी खास और महत्वपूर्ण है.पंचांग के अनुसार इस बार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 24 मार्च को रविवार के दिन आएगी. इस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र तथा कन्या राशि के चंद्रमा की साक्षी में पाताल लोक में निवास भद्रा रहेगी. यदि भद्रा कन्या, तुला व धनु राशि के चंद्रमा की साक्षी में आती है, तो वह भद्रा पाताल में वास करती है और पाताल में वास करने वाली भद्रा धन धान्य और प्रगति को देने वाली मानी गई है. इस दृष्टि से इस भद्रा की उपस्थिति शुभ मंगलकारी महत्वपूर्ण मानी गई है.इसलिए इस दिन प्रदोष काल में होलिका का पूजन किया जा सकता है.
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होली दहन में भद्रा की रोक क्यों
हमारे अधिकांश पाठक यह जानना चाहते हैं कि होली दहन में भद्रा की रोक क्यों है. तो एक पुराणिक कथा के अनुसार भद्रा काल में होलिका दहन शुभ नही माना जाता है. दरअसल भद्रा समय में होली दहन करने पर दोष लगता है. बताया जाता है कि भद्रा के स्वामी यमराज है, जिसके कारण इस समय या मुहूर्त में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है.लेकिन हां अगर आप चाहे तो भद्रा पुंछ में होलिका दहन कर सकते है, मान्यता है कि इस समय भद्रा का प्रभाव बहुत कम होता है. जिसे कारण इसमें कोई दोष नही लगता. यही कारण है कि होली दहन में भद्रा की रोक होती हैं.
होली 2024 पर भद्रा का साया कब तक रहेगा
हिंदू पंचांग के अनुसार होलिका दहन पर भद्रा का साया है, 24 मार्च 2024 को होलिका दहन के दिन ही भद्रा भी लग रही है. इस दिन भद्रा सुबह 09.54 बजे से लग रही है, जो रात 11 बजकर 13 मिनट तक है. इस दिन भद्रा की पूंछ का समय शाम 06:33 बजे से शाम 07:53 बजे तक, भद्रा के मुख का समय शाम 07:53 बजे से रात 10:06 बजे तक है.
पंचांग के अनुसार होलिका दहन के दिन पृथ्वी लोक पर भद्रा का वास सुबह 09:54 बजे से दोपहर 02:20 बजे तक है, तो कह सकते है कि पृथ्वी लोक की भद्रा ही हमारे लिए प्रभावी मानी जाती है. इसलिए इस समय कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता है, वहीं पाताल लोक भद्रा का वास दोपहर 02:20 बजे से रात 11:13 बजे तक है. वही अगर बात करे होलिका दहन की तो आपको बता दे कि होली पर दो शुभ योग बन रहे हैं. वृद्धि योग रात 9.30 बजे तक है, जबकि ध्रुव योग का समय 24 मार्च को पूरे दिन है. वहीं होलिका दहन का मुहूर्त रात 11.13 बजे से रात 12.07 बजे तक रहेगा.
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