हमारे हिंदू धर्म परंपराओं में यूं तो सभी त्यौहारों का बहुत महत्व है, लेकिन इनमे से शीतला अष्टमी का त्यौहार सबसे खास और महत्वपूर्ण त्यौहार माना गया है. बताया जाता है कि इस दिन शीतला माता की पूजा और आराधना करने से चिकन पॉक्स, स्माल पॉक्स, मीजिल्स जैसे कई बीमारियां आपको स्पर्श भी नहीं कर पाती है. महिलाए ये पूजा खासकर अपने बच्चो के लिए करती है. इसके अतिरिक्त माता की विधि विधान से पूजा करने पर मनुष्य को कई बीमारियों से हमेशा के लिए छुटकारा मिलता है. तो आइए शीतला माता की पूजा करने वाली सभी महिलाओ के लिए हम शीतला माता की कहानी प्रस्तुत करने जा रहे है. जिसे पढ़े बिना आपकी पूजा अधूरी रहती है. तो आइए देखें ..
Sheetla Mata ki Kahani
Sitla ashtami त्यौहार को खास तौर पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है.शीतला अष्टमी को बसोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है. शीतला अष्टमी की पूजा हर साल चैत्र मास की अष्टमी तिथि के दिन की जाती है. इस वर्ष 2024 में शीतला अष्टमी मंगलवार, 2 अप्रैल 2024 को आ रही है. शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त प्रातः 6:19 बजे से सायं 06:32 बजे तक रहेगा. इस दिन सभी श्रद्धालुजन व्रत और पूजन करते है. शीतला माता की पूजा अर्चना कर उन्हे बासी भोजन का भोग लगाया जाता है. तो आइए जो जो महिलाएं शीतला माता की पूजा करने जाती है, खास उनके लिए हम Sitla Mata ki Kahani उपलब्ध करवा रहे हैं.
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कौन है शीतला माता
अब आइए जानते है कौन है शीतला माता . शीतला माता का जिक्र स्कंद पुराण में मिलता है. बताया जाता है कि माता शीतला का जन्म भगवान ब्रह्माजी से हुआ था. वही शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी शक्ति का ही स्वरूप माना जाता है. एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवलोक से देवी शीतला माता अपने हाथ में दाल के दाने लेकर और भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में निवास करने आई थीं. लेकिन राजा विराट ने देवी शीतला को अपने राज्य में रहने से मना कर दिया. जिसके कारण माता शीतला क्रोधित हो गई.
माता शीतला के प्रचंड प्रकोप से राजा विराट की सभी प्रजा की त्वचा पर लाल दाने हो गए. तब राजा विराट को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह देवी शीतला के पांवों में पड़कर अपनी अनजाने में हुई इस गलती की क्षमा मांगने लगे. शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए राजा ने कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया. तब शीतला माता का क्रोध शांत हुआ. यही से शीतला माता को ठंडे भोजन का भोग लगाने की परंपरा चल रही है. इसलिए हर साल सभी श्रद्धालु शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए ठंडी चीजों का भोग लगाकर माता का आशीर्वाद लेते है.
शीतला अष्टमी का महत्व
हमारी हिन्दू संस्कृति में शीतला अष्टमी का महत्व बहुत अधिक है. बसोड़ा पूजा के नाम से जानी जाने वाली शीतला माता की विधि विधान पूर्वक पूजा आराधना करके शीतला अष्टमी मनाई जाती है. यह पूजा होली के बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है. यानी कि होली के 8 दिन बाद ही शीतला अष्टमी मनाई जाती हैं. इस त्यौहार की सबसे बड़ी बात यह है कि इस दिन सभी मनुष्य ठंडे और बासी भोजन को ग्रहण करते है. इस दिन गरम भोजन का सेवन करना वर्जित होता है.माता शीतला की पूजा करने के लिए एक दिन पहले शाम के समय प्रसाद तैयार कर लिया जाता है.
शीतला अष्टमी के दिन जो भोजन किया जाता है वह बासी होना आवश्यक है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शीतला माता बच्चो को सर्द गर्म से होने वाली चेचक जैसी कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा दिलाती है. इसी के साथ कई संक्रामक रोगों से ग्रस्त मनुष्य को ठंडक प्रदान कर उनके शारीरिक कष्ट को दूर करती है.शीतला सप्तमी के दिन स्त्रियां परिवार की खुशहाली और शांति की कामना से श्वेत पाषाण रुपी माता शीतला की पूजा करती हैं.
इन पाषाणों की संख्या 7, 8 या 9 होती है. इसी के साथ शीतला अष्टमी से जुड़ी एक मान्यता और भी है ,उसके मुताबिक, शीतला अष्टमी का व्रत संतान की सलामती के लिए रखा जाता है. माता शीतला को चेचक या खसरा जैसे रोगों से मुक्ति दिलाने वाली देवी माना जाता है, जिस चलते माताएं अपनी संतान की सेहत के लिए शीतला अष्टमी का व्रत रखती हैं.
स्कंद पुराण के अनुसार, शीतला माता की अर्चना के लिए शीतलाष्क स्त्रोत का गान होता है. यह स्त्रोत इस प्रकार निम्नलिखितहै :
वन्देहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम। मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालड्कृतमस्तकाम।।
इस तरह पूजा समाप्ति और व्रत के पारण के बाद ही महिलाएं बासी भोजन को ग्रहण करती हैं.
शीतला माता की कहानी
शीतला अष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा. अष्टमी के दिन बासी चावल माता शीतला को चढ़ाने व खाने का रिवाज है. लेकिन दोनों बहुओं ने बासी खाने से बीमार हो जाने का समझ कर सुबह गर्म खाना बना लिया. सास को जब पता चला तो दोनो बहुओ को खूब खरी खोटी सुनाई . कुछ समय बाद पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई है. इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया.
दोनो बहुए शवों को लेकर दोनों घर से निकल गईं. दोनो बहुएं एक जगह विश्राम के लिए रुकी. वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली. दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी. उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं. कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला. शीतला और ओरी ने बहुओं को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए.
इस बात को सुनकर दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए. ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है. ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला अष्टमी के दिन गर्म और ताजा खाना बनाने की वजह से ऐसा हुआ है. ये सब जान दोनों ने माता शीतला से अपने इस कर्म की क्षमा मांगी और आगे से ऐसा ना करने के लिए भी कहा. इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया. अब दोनो बहुएं अपने घर खुशी खुशी चली गई .इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत बहुत विधि विधान से मनाए जाने लगा.
FAQ’s शीतला माता की कहानी
Q. शीतला अष्टमी कब है?
Ans इस वर्ष 2024 में शीतला अष्टमी मंगलवार, 2 अप्रैल 2024 को आ रही है. शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त प्रातः 6:19 बजे से सायं 06:32 बजे तक रहेगा.
Q. शीतला माता किसकी पुत्री है?
Ans शीतला माता भगवन ब्रह्माजी की पुत्री है.
Q. शीतला अष्टमी त्यौहार मुख्य रूप से किन राज्यो में मनाया जाता है?
Ans शीतला अष्टमी त्यौहार मुख्य रूप राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में मनाया जाता है.